![[Image: pk90_1459498612.jpg]](http://i9.dainikbhaskar.com/thumbnail/680x588/web2images/www.bhaskar.com/2016/04/01/pk90_1459498612.jpg)
{myadvertisements[zone_6]}
बात 1975 की है जब रॉयल स्वीडिश फैमिली की लड़की चारलोटी इंडिया आईं और यहां एक गरीब कलाकार पीके के हुनर और उसकी सरलता पर फिदा हो गईं। पीके यानी प्रद्युम्न कुमार महानंदिया नाम का ये पोट्रेट आर्टिस्ट मूल रूप से उड़ीसा के देनकनाल से है और इसने उड़ीसा से दिल्ली आकर यहां के आर्ट कॉलेज में दाखिला लिया और पोट्रेट आर्टिस्ट के तौर पर पहचान बनाई। यहीं पर 19 साल की चारलोटी से प्रद्युम्न, पीके की मुलाकात हुई और चारलोटी को इस हुनरमंद और सरल कलाकर से प्यार हो गया।शादी के बाद मुश्किल हुआ सफर...
{myadvertisements[zone_6]}
जल्दी ही ये प्यार शादी के बंधन में बदल गया लेकिन मुश्किलें कम नहीं थीं। चारलोटी को वापस स्वीडन लौटना पड़ा और पैसों की कमी और गरीबी के चलते प्रद्युम्न अपनी विदेशी पत्नी के साथ न जा सका। पीके को चारलोटी ने स्वीडन का टिकट भी ऑफर किया लेकिन वो अपनी बीवी से मिलने अपने दम पर जाना चाहता था। फिर इस गरीब कलाकार ने बीवी से किए वादे को निभाने के लिए अपना सारा सामान बेच दिया और उन पैसों से एक साइकिल खरीदी। 1977 में वह दिल्ली से स्वीडन के लिए रवाना हो गया उन दिनों अधिकतर देशों में जाने के लिए वीजा बगैरह की जरूरत नहीं होती थी। इस सफर के दौरान वह पहले दिल्ली फिर अमृतसर से होता हुआ अफगानिस्तान, ईरान, टर्की, बुल्गारिया, यूगोस्लाविया, जर्मनी, ऑस्ट्रिया और डेनमार्क से गुजरा और यहां उसे कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ा। साइकिल की टूट-फूट, खाने-पीने की परेशानी के साथ उसके सफर में कई मुश्किलें आईं लेकिन वो बढ़ता गया।
लगभग 5 माह के सफर के बाद आखिरकार वह गुटेनबर्ग, स्वीडन पहुंच ही गया। इधर स्वीडिश इमीग्रेशन विभाग पीके को साइकिल पर देख हैरत में था और उसे पकड़ लिया, पीके ने उन्हें सबूत भी दिखाए तब भी उनको इस शख्स पर यकीन नहीं हुआ। आखिरकार चारलोटी को जब सबकुछ पता चला तब वो खुद इमीग्रेशन ऑफिसर्स से मिलीं और उन्हें पीके और अपने बारे में सबकुछ बताया तब कहीं जाकर ये मिलन हो पाया। फिर क्या था चारलोटी के माता-पिता ने भी अपने रॉयल ट्रेडिशन को तोड़कर अपने गरीब हुनरमंद दामाद को स्वीकार कर लिया। यही नहीं चारलोटी का इंडियन नाम चारूलता भी रखा गया। आज 40 साल बाद डॉ. पीके और चारलोटी के 2 बच्चे भी हैं और बताया जाता है कि पीके अब स्वीडन में उड़िया कल्चरल एम्बेसडर के रूप में काम करते हैं।